जैन दर्शन के मूलागम में से एक नन्दी सूत्र पर विशेष व्याख्यान कार्यक्रम सोमवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के सानिध्य में दो सत्र में आयोजित हुआ। जैन विश्वविद्यालय बैंगलुरु की सह आचार्य डॉ. तृप्ति जैन ने नन्दी सूत्र: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया कि नन्दी सूत्र में ज्ञान का विशेष निरुपण होने के कारण इसे इसे चूलिका सूत्र भी कहा गया है। नन्दी सूत्र ज्ञान का विषय है, इसलिए हमें यह आनन्द प्रदान करता है। नन्दी सूत्र की उपयोगिता बताते हुए कहा कि जितनी इस सूत्र की प्राचीनकाल में उपयोगिता थी, उतनी ही आज भी है। डॉ. तृप्ति ने बताया कि जीवन में ज्ञान को दो तरह से अपनाया जा सकता है। पहला क्रिया रूप में और दूसरा ज्ञान का संकलन कर किया जा सकता है। डॉ. तृप्ति ने नन्दी सूत्र की व्याख्या करने के साथ इसकी महत्ता पर प्रकाश डाला। साथ ही बताया कि इसमें संघ की व्याख्या मिलती है और इसमें साधु- साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं चारों को शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त इस सूत्र में साधु की, श्रावक की, धर्म की परिभाषा देखने को मिलती है।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज ने नन्दी सूत्र में अवधी और मनःपर्यव ज्ञान के बारे में बताया और कहा कि हमारा विषय ज्ञान पर ही चल रहा है। नन्दी सूत्र ज्ञान का विषय है। ज्ञान की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि ज्ञान आत्मा की शक्ति है, आत्म-ज्योति है और आत्मा का गुण है। जो आत्मा है, वह ज्ञानवान है। महाराज साहब ने कहा आवरण आते रहते हैं, इन्हें हटाने का काम ही साधना है। ज्ञान जीवन के लिए बहुत जरूरी है। चरित्र की पवित्रता ज्ञान से होती है। आचार्य श्री ने इसकी जीवन में नितांत आवश्यकता बताई।
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि नन्दी सूत्र: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विषय पर जैन विश्वविद्यालय बैंगलुुरु की डॉ. तृप्ति जैन विशेष व्याख्यान दिया। इससे पूर्व कार्यक्रम की संयोजिका जोधपुर की डॉ. श्वेता जैन ने उनका परिचय दिया और सहसंयोजिका दर्शना बांठिया सहित महिला संघ की ओर से डॉ. तृप्ति का शॉल ओढ़ाकर, मोतियों की माला पहनाकर स्वागत किया गया।