जीवन मूल्यों की पड़ताल करते, अपने होने का एहसास कराते, श्रृंगार-वीर और ओज से भरे गीत,कविताएं, गजल के उम्दा शेर। एक से बढकर एक रचनाओं की प्रस्तुतियां। हर गीत कविता शेर की हर पंक्ति पर वाह वाह करते, दाद देते श्रोताओं का हुजूम। अवसर था दो दिवसीय राज्य स्तरीय कविता समारोह के पहले दिन श्रीडूंगरगढ़ में आयोजित कवि सम्मेलन का। राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति व राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से इक्कीसवीं सदी की राजस्थान की हिन्दी कविता दशा और दृष्टि विषय पर आयोजित दो दिवसीय कविता समारोह के पहले दिन शनिवार शाम कवि सम्मेलन हुआ। संस्कृति भवन परिसर में हुए कवि सम्मेलन में प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आए कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं की वाहवाही बटोरी।
देर रात तक चले कवि सम्मेलन में डीडवाना के राजस्थानी कवि गीतकार डा. गजादान चारण ने डिगल में “प्रमाण अलेखूं पुख्ता है, इतिहास जिकण रो साखी है,इण आजादी री इज्जत नैं, म्हे राजस्थान्यां राखी है, इण गौरवगाथा रै पानां में, सोनलिया आखर म्हारा है,कटतोड़ा माथा, धड़ लड़ता, बख्तर अर पाखर म्हारा है, धारां धंसतोड़ां, भड़बंकां, मर कर राखी है आजादी, सिंदूर, दूध अर राखी री, कीमत दे राखी आजादी, म्हे रीझ्या सिंधू रागां पर, खागां री खनकां साखी है” प्रस्तुत करते हुए राजस्थानी गौरवशाली गाथा का गान किया।
वहीं सूरतगढ के कवि शायर राजेश चड्ढा ने” आज फिर याद पुरानी वो कहानी आयी, उम्र सहमी सी हुई फिर से जवानी आयी, अब भी हाथों को मेरे तेरा भ्रम होता है, जब भी हाथों में मेरे तेरी निशानी आयी” पेश कर श्रोताओं को रूमानियत के भावों से सराबोर कर दिया। इस मौके पर भादरा के वरिष्ठ कवि शायर पवन शर्मा ने अपनी गजल” किसका क्या-क्या लगता हूं, फिर भी तन्हा लगता हूं, साहब तो हूं दफ्तर में, गर में तनखा लगता हूं” सहित अपने गीत गजलों और शेरों से वाहवाही बटोरी। कवि सम्मेलन के दौरान कवयित्री मोनिका गौड़ ने अपने गीत” सुबह दोपहर शाम बहुत है, इश्क में मुझको काम बहुत है, मा बाबा मेरे काबा काशी, इन चरणों के धाम बहुत है पढकर रिश्तों के भीतर के नेह की बाकमाल प्रस्तुति दी।
इस मौके पर कवयित्री मनीषा आर्य सोनी ने अपने हिन्दी गीत “मौसमों के झूठे वादे फिर भी मन आश्वस्त है” तो वहीं राजस्थानी गीत “थूं बाथ पसार्यो निरभै आभो ,मै तारा री ऊजळ रात” की प्रस्तुति देकर जीवन और जीवन में स्नेह के भावों को साकार कर दाद बटोरी। कवि सम्मेलन के मौके पर राजस्थानी-हिन्दी के कवि गीतकार शंकरसिंह राजपुरोहित ने जीत्या नाचै जोर का, हारया दे हेला, करया इण क्रिकेट तो, गूंगा अर गैलाह हास्य रचना के साथ ही मोबाइल के बढते चलन से रिश्तों में बढती दूरियां पर और रूलपट रासौ रचना से दोहे सुनाकर दाद बटोरी।
कवि सम्मेलन में रावतसर के वरिष्ठ कवि गीतकार रूपसिंह राजपुरी ने अपने हास्य गीत कुलङियो सहित मास्टर जी री जिंदगी के साथ ही पति पत्नी के बीच रिश्ते के खट्टे मीठे प्रसंग को अपनी रचनाओं के जरिए सामने रखा। कवि सम्मेलन में बीझासर के युवा कवि गीतकार छैलू चारण छैल ने भारत भू पर विघन पङा है छलनी छलनी छाती, तारनहारे तार सके तो सुन ले मेरी पाती!, चुप है खङग ढाल देश का अजब हाल,त्राहिमाम त्राहिमाम भारती पुकारती दोगले दंभी चरित, गिरगिटों से है चित्त, विष दिल में भरा है जीभ रटे आरती” प्रतुत कर ओजस्वी राजस्थानी गीतों-कविताओं की प्रस्तुतियां दी।
जोधपुर की कवयित्री मधुर परिहार ने अपने गीत “किसी की याद में अक्सर तड़पना ठीक लगता है, कोई जब दूर जाए तो तरसना ठीक लगता है, परिदों को कफ़स की तिलियो से दूर ही रखना,खुले आकाश मे इनका चहकना ठीक लगता है” पेश कर दाद बटोरी। कवि सम्मेलन में कवि-शायर नेमीचंद पारीक, रतनगढ़ के मनोज चारण, कैलाश दान कविया, गोपाल पुरोहित ने अपनी कविताओं, गीतों और गजलों की प्रस्तुतियां देकर श्रोताओं को भावविभोर किया। कवि सम्मेलन के मौके पर संस्थान की ओर से कवियों गीतकारो का सम्मान किया गया। देर रात तक चले कवि सम्मेलन के समापन पर संस्थान अध्यक्ष श्याम महर्षि ने आभार जताया। इस मौके पर बङी संख्या में श्रोता मौजूद थे।