आज का संस्कृत छात्र उत्साह, आत्मविश्वास, धैर्य, जिज्ञासा और आत्मसम्मान से परिपूर्ण है क्योंकि वह संस्कृत में चिन्तन करता है और संस्कृत बोलता है।प्रत्येक संस्कृत युवा को ‘संस्कृतेन पाठनं संस्कृताय जीवनम्’ के मन्त्र के साथ राष्ट्रनिर्माण के कार्य में संलग्न होना चाहिए।वर्तमान में भारत की स्वतन्त्रता का अमृत काल चल रहा है इस अमृत काल में अमृतभाषा का प्रचार सम्पूर्ण विश्व में होना चाहिए।उक्त विचार संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संघटन मन्त्री श्री दिनेश कामत ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के जयपुर परिसर में आयोजित त्रिदिवसीय युव-महोत्सव के समापन कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में व्यक्त किए।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीसोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ललित पटेल ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जय-पराजय की चिन्ता किए बगैर राष्ट्र नवोदय की आकांक्षा को मन में रखकर संस्कृत-स्पर्द्धाओं में सहभाग करना चाहिए । अध्यक्षीय भाषण करते हुए जयपुर परिसर के निदेशक प्रो. सुदेश कुमार शर्मा ने कहा कि जब युव महोत्सव की कल्पना की गई थी, तब इसके आरम्भ काल में केवल शैक्षणिक प्रतियोगिताओं का ही समावेश था, बाद में सांस्कृतिक स्पर्धाओं को जोड़ा गया, फिर कालान्तर में क्रीड़ा स्पर्धाओं का भी समावेश इसमें होने से यह महोत्सव छात्रों के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
वैदिक मंगलाचरण से आरम्भ इस कार्यक्रम में अतिथियों के उद्बोधन के पश्चात् विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कार प्रदान किए गये। जयपुर परिसर ने युव महोत्सव में सर्वाधिक पुरस्कार प्राप्त कर विजय -वैजयन्ती प्राप्त की।भोपाल परिसर को द्वितीय, लखनऊ परिसर को तृतीय एवं हरियाणा संस्कृत विद्यापीठ, भगौला को चतुर्थ स्थान प्राप्त हुआ।उल्लेखनीय है कि इस त्रिदिवसीय युव महोत्सव में अनेक शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं खेल स्पर्द्धाओं का आयोजन किया गया था जिसमें राजस्थान,मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा इन चार राज्यों से सात दलों ने भाग लिया था।स्वागतभाषण डॉ. पवन व्यास, धन्यवादज्ञापन प्रो. सत्यम कमारी एवं संचालन प्रो. वाय्. एस्. रमेश ने किया । पुरस्कार-कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रमोद बुटोलिया,डॉ. रेखा पाण्डेय एवं श्री अभिषेक शर्मा ने किया।