धर्मनगरी बीकानेर जिसे एक समय जंगल प्रदेश के नाम से भी जानी जाता था। बीकानेर रियासत का इतिहास राव बीका से लेकर बीकानेर रियासत के अंतिम महाराजा करणी सिंह तक इतिहास बेहद गौरवशाली रहा। बीकानेर के अंतिम महाराजा करणी सिंह का जन्म आज ही के दिन 21 अप्रैल 1924 को बीकानेर रियासत के महाराजा सादुल सिंह के पुत्र के रूप में हुआ। महाराजा करणी सिंह को कुशल प्रशासक, संवेदनशील जनप्रतिनिधि और जुझारू खिलाड़ी के रूप में याद किया जाता है।
महाराजा करणी सिंह ने सेंट स्टीफंस कॉलेज,दिल्ली और सेंट जेवियर्स कॉलेज,बॉम्बे में शिक्षा प्राप्त की। महाराजा करणी सिंह की शादी डूंगरपुर राजघराने की राजकुमारी और प्रसिद्ध क्रिकेट प्रशासक राजसिंह डूंगरपुर की बहन सुशीला कुमारी के साथ हुई। राजमाता सुशीला कुमारी भी सदैव जन कल्याणकारी कार्यों के लिए आगे रही।
महाराजा करणी सिंह का खेलों के प्रति खवासा रुझान रहा। निशानेबाजी, क्रिकेट, गोल्फ और टेनिस के उम्दा खिलाड़ी महाराजा करणी सिंह ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निशानेबाजी में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। उन्होंने 1960 से 1980 तक 5 बार ओलंपिक खेलो में हिस्सा लेकर देश के एकमात्र ओलंपियन बने। 38 व विश्व शूटिंग चैंपियनशिप में भारत को रजत पदक दिलाने वाले महाराजा करणी सिंह को भारत सरकार द्वारा अर्जुन अवार्ड से भी नवाजा गया है।
महाराजा करणी सिंह भारत की आजादी के बाद 1952 से 1977 तक लोकसभा सांसद रहे। लगातार 5 बार और 25 साल तक सांसद रहने वाले महाराजा करणी सिंह ने सांसद रहते हुए बीकानेर की पहचान राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाई। बतौर सांसद महाराजा करणी सिंह विभिन्न मंत्रालयों के परामर्शदात्री समितियो के सदस्यों भी रहे।
बीकानेर रियासत के अंतिम महाराजा करणी सिंह की राजनीतिक विरासत उनकी पौत्री सिद्धि कुमारी आगे बढ़ा रही है सिद्धि कुमारी बीकानेर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से 2008 से अब तक लगातार तीन बार विधायक चुनकर राजस्थान विधानसभा पहुंची है। वही उनकी पुत्री राज्यश्री ने उनकी निशानेबाजी की विरासत को आगे बढ़ाया और उन्होंने भी अपने पिता की तरह अर्जुन अवॉर्ड प्राप्त किया।
बीकानेर जनमानस में आज भी महाराजा करणी सिंह को लेकर आदर का भाव है। खिलाड़ियों के लिए बीकानेर में महाराजा करणी सिंह के नाम पर खिलाड़ियों की सुख सुविधाओं से संपन्न महाराजा करणी सिंह स्टेडियम बना हुआ है, यह स्टेडियम आज बीकानेर की पहचान बन चुका है। महाराजा करणी सिंह बीकानेर के एकमात्र महाराजा रहे जिन्होंने राजतंत्र से लोकतंत्र तक का गौरवशाली सफर तय किया।
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