आपणी हथाई न्यूज, (पण्डित बृजमोहन पुरोहित) सनातन धर्म में हर माह में 2 बार एकादशी व्रत किया जाता है। अगर आप भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो वर्ष 2024 की अंतिम सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। इससे कारोबार में वृद्धि होती है। पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर करना चाहिए। इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
प्रत्येक वर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सफला एकादशी मनाई जाती है। साथ ही यह तिथि भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए बेहद शुभ मानी जाती है। पंचांग के अनुसार, 2024 की आखिरी सफला एकादशी व्रत 26 दिसंबर को किया जाएगा। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए और अगले दिन यानी द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करना चाहिए। साथ ही अन्न और धन का दान करना फलदायी माना गया है।
ऐसा माना जाता है कि सफला एकादशी की पूजा के दौरान व्रत कथा पाठ न करने से जातक व्रत के पूर्ण फल की प्राप्ति से वंचित रहता है। इसलिए व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि सच्चे मन से कथा पढ़ने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है और पुण्य की प्राप्ति होती है
कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक चंपावती नाम का नगर था। जहां एक राजा रहता था, जिसका नाम महिष्मान था। उसके 4 पुत्र थे। उसका सबसे बड़ा बेटा दुष्ट और पापी था और देवी-देवताओ की निंदा करता था। एक बार ऐसा समय आया जब अपने पुत्र लुम्पक को राजा ने नगर से निकाल दिया, जिसके बाद वह जंगल में रहने लगा और मांस का सेवन करने लगा। उसको कुछ दिनों तक कुछ भी खाने को नहीं मिला। ऐसे में वह एकादशी तिथि के दिन एक संत के पास पहुंचा। संत ने लुम्पक का आदर-सम्मान किया और उसको खाने के लिए भोजन दिया। संत के इस व्यवहार को देख लुम्पक बेहद प्रसन्न हुआ, जिसके बाद साधु ने उसे अपना शिष्य बनाया। कुछ दिन के बाद लुम्पक के व्यवहार में बदलाव आया और संत ने उसे एकादशी व्रत करने की सलाह दी। लुम्पक ने साधु की आज्ञा का पालन किया। इसके बाद महात्मा ने उसके समक्ष अपना वास्तविक रूप प्रकट किया। महात्मा के स्वरुप में स्वयं लुम्पक के पिता महिष्मान खड़े थे। इसके बाद लुम्पक ने राजा का कार्यभार संभाला। लुम्पक पौष माह के कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी का व्रत करने लगा।
सफला एकादशी का महत्व – मान्यता है कि इस दिन व्रती विशेष रूप से भगवान विष्णु कि पूजा करते है ताकि वे जीवन में हर किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकें। यह व्रत विशेष रूप से व्यापार, शिक्षा और अन्य कार्यों में सफलता के लिये मना जाता है।
एकादशी पूजा-विधि
स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें।भगवान श्री हरि विष्णु का जलाभिषेक करें।प्रभु का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें। फिर प्रभु को पीला चंदन और पीले पुष्प अर्पित करें।मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें।संभव हो तो व्रत रखें और व्रत लेने का संकल्प करें। सफला एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें,प्रभु को तुलसी दल सहित भोग लगाएं,अंत में क्षमा प्रार्थना करें । भोग: फल- केला, सूखे मेवे तथा पीले मिष्ठान का भोग लगा सकते हैं।