आपणी हथाई न्यूज, उन्नतीस जनवरी को माघ मास की मौनी अमावस्या है और इस बार ये अमावस्या प्रयागराज महाकुंभ के दौरान आई है। स्कंद पुराण के अनुसार यह युगाधित तिथि है द्वापर युग की शुरुआत इसी तिथि से हुई शास्त्र कहते है की प्रत्येक युग में 100वर्षों तक दान करने से जो फल मिलता है वह युगाधिक काल में 1 दिन के दान से प्राप्त हो जाता है यानी 100 वर्षों तक दान करे वो एक तरफ़ और 1 दिन यानी मौनी अमावस्या के दिन आप दान करे तो उसका पुण्यफल बराबर होता है ।
पितृदोष :- जिनको भी पितृदोष है उसे इस तिथि का उपयोग ज़रूर करना चाहिए । इस दिन पितृ दोष शांति के साथ पिंडदान, पितरों का तर्पण आदि भी किया जाता है l यदि आपको पितृ दोष है तो आप उपाय करके इस दोष से मुक्ति पा सकते हैं पितरों को खुश कर सकते हैं, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है l
उपाय :- एक लोटे में सामान्य जल, गंगाजल, तिल, कुशा, तुलसी पत्र मिलाकर अपने सामने रख ले और गीता जी के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए दक्षिण दिशा की तरफ़ मुख करके यह जल अपने पितरों के निमित करदे इससे पितरों को अखंड तृप्ति प्राप्त होती है और आपका पितृदोष नाश करने में यह सहायता करेगा ।
संगम में स्नान के संदर्भ में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है, समुद्र मंथन की कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलक कर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक व उज्जैन में जा गिरी। यही कारण है कि यहाँ की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
यह तिथि अगर सोमवार के दिन पड़ती है तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। अगर सोमवार हो और साथ ही महाकुम्भ लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से, कलियुग में दान से, लेकिन माघ मास ‘माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई’ यह पंक्ति रामचरितमानस से ली गई हैl इसका मतलब है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो सभी तीर्थ, ऋषि, महर्षि, मनीषी प्रयाग में आ जाते हैं । संगम स्नान हर युग में अन्नंत पुण्यदायी होगा। इस तिथि को पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अपने सामर्थ के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण जो भी आपकी इच्छा हो दान देना चाहिए।
इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है । चूंकि यह व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन धारण करना पड़ता है इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है। शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। मौनी अमावस्या तिथि को संतों की भांति चुप रहें तो उत्तम है। अगर संभव नहीं हो तो अपने मुँह से कोई भी कटु शब्द न निकालें।
इस तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में शिव और विष्णु दोनों एक ही हैं जो भक्तो के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण करते हैं इस बात का उल्लेख स्वयं भगवान ने किया है। इस दिन पीपल में जल देकर परिक्रमा करने और दीप दान करने का महत्व है ।