आपणी हथाई न्यूज, बात सन 1908 की है दुनिया के एक छोटे से देश कनाडा ने दे लाइट सेविंग टाइम की शुरुआत की आधिकारीक घोषणा की थी। फायदेमंद होने के चलते यह ट्रेंड पश्चिम के और देशों में भी चलने लग गया। साल 1916 में जर्मनी और आस्ट्रिया ने भी अपने यहां यह सिस्टम लागू कर दिया। उस समय प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था और देश चाहते थे कि दिन की रोशनी में ही सारे काम खत्म कर लिया जाए ताकि बिजली बचाई जा सके और ऊर्जा की खपत कम हो इसलिए पश्चिम के कई देश इस सिस्टम को फॉलो करने लगे।
अब इसी सिस्टम को लेकर एक और देश लेबनान है जो किसी समय अपनी समृद्धि के लिए चर्चा में था हालांकि हाल फिलहाल लेबनान बुरे दौर से गुजर रहा है। इन दिनों लेबनान पर एक और संकट नजर आ रहा है जिसमें 2 मजहब आपस में आमने-सामने हो गए हैं।
दरअसल लेबनान मार्च के आखिरी संडे को सभी गाड़ियों को एक घंटा आगे किया जाता है लेकिन इस बार वहां के कार्यवाहक प्रधानमंत्री नजीब मीकाती ने इसे 20 अप्रैल से लागू करने का ऐलान कर दिया। इसके लिए उन्होंने यह दलील भी दी की इस दौरान रमजान करने वाले लोगों को आराम मिल सकेगा। प्रधानमंत्री के इस ऐलान के बाद गुस्साए चर्च के अधिकारियों ने हर साल की तरह महीने की आखिरी रविवार को अपनी घड़ियों को एक घंटा आगे कर दिया और कहा कि बहुसंख्यक आबादी को खुश करने के लिए कार्यवाहक पीएम नियम तोड़ रहे हैं।हालांकि कुछ ही दिनों में पीएम ने अपना फैसला बदल दिया और कहा कि डे लाइट सेविंग सिस्टम इस साल बुधवार 29 मार्च की रात से लागू होगा।
बार-बार फैसला बदलने से चर्च और कैबिनेट के बीच तनाव पनप गया जिसके चलते पूरे देश में अफरा-तफरी मच चुकी है। अब देश की आधी घड़ियां अपने पुराने समय से चल रही है, तो वही आधी घड़ियां डेलाइट सिस्टम को मानते हुए समय से 1 घंटे आगे हो चुकी है। इससे आम आदमी के काम पर भी असर हो रहा है क्योंकि किसी को सही समय का पता नहीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वे किस समय को सही माने इस पर भी लेबनान इन दिनों उलझन में फंसा हुआ है।
गिरीश कुमार श्रीमाली