आपणी हथाई न्यूज,एक अद्भूत व्यक्तित्व न देखा और न ही सुना। साईकिल पर 3 बच्चों को बिठाकर सलामी लेना, अपने से भारी पहलवान को मिनटों में चित कर देना, सीने पर बालक को बिठाकर तैरना, लाठी ऐसी चलाना कि कंकर भी शरीर को छू ना पाये, लोहे की रिंग मे आग लगाकर उसके अंदर से निकल जाना, बाजुओं में बंधी जंजीर को ताकत लगाकर तोड़ देना, अच्छी फुटबॉल खेलना ओर कई प्रकार के करतब, संवाद नाटक और मंचन, गीत और कविताये आदि लेखन में भी पारंगत, संवाद ओर मंचन से किशोर शादू और पृथ्वीराज कपूर इतने प्रभावित हुऐ कि बम्बई में बसने ओर फिल्मी दुनिया में काम करने का ऑफर दे दिया। देशभक्ति, क्रान्तिकारी सोच । और गांधी के विचारों से प्रभावित देश और देशवासियों की सेवा के संकल्प के कारण प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
4 जुलाई 1918 को हिंगनघाट जिला वर्धा महाराष्ट्र में आपका सूरजकरण व्यास के घर जन्म हुआ। पिता से संकल्प के प्रतिनिष्ठा माता से उच्च संस्कारों का असर जीवन पर पड़ा जिसे ताजिन्दगी निभाया।
प्राइमरी शिक्षा हिंगनघाट में हुई उसके बाद में वर्धा आ गये जहां मारवाणी विद्यालय में मेट्रिक शिक्षा ग्रहण की, यहां उन्हे हॉस्टल में रहना पड़ता था। जहां पास ही में महिला आश्रम था जहां महात्मा गांधी निवास करते थे। आजादी का आन्दोलन उन दिनों चरम पर था। गांधी से मिलने और विचार विमर्श करने देश और विदेश से कई नेता और विचारक आया करते थे जिनमें प्रमुख थे आचार्य कृपलानी राजगोपालाचार्य, पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल, समरगुहा पट्टाभी सीता रमैया, बाबू जयप्रकाश नारायण, डॉ राममनोहर लोहिया, अशोक मेहता, अरुणा अत्सफ अली, मनीराम बागड़ी, आदि अनेक नेताओं का आना जाना निरन्तर रहता था । सुभाष चन्द्र बोस भी वहां आये। पाठशाला में इन नेताओं के भाषण होते थे। इन सारी गतिविधियों और गांधीजी के विचारों का उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे सक्रिय रूप से आजादी के आन्दोलन में जुड़ते गये। यहां उन्होने भारत माता नाटक लिखा और प्रभावी मंचन किया जिससे क्रुद्ध होकर अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गिफ्तार कर जेल में भिजवा दिया।
सन् 1948 में व्यास जी बीकानेर आ गये और प्रथम वे पुष्करणा स्कूल में अध्यापक बने बाद में वे जैन स्कूल में खेल अध्यापक बने यही उन्होने 13 बच्चों को साईकिल पर बिठाकर प्रदर्शन किया, तैराकी का प्रदर्शन आदि कई प्रदर्शन किये मौका जैन स्कूल के वार्षिकोत्सव का था । देशभक्ति के जज्बे के कारण 1953 में अपने पांच साथियों के साथ गोवा मुक्ति आन्दोलन में भाग लेने गोवा गये के ओर लाठी गोली के बीच आगे बढ़ते गये यह वृतांत आज भी उनके साथ गये सत्यनारायण हर्ष सुनाते है। सन् 1953 में बीकानेर में ऐतिहासिक गेहूं निकासी आन्दोलन हुआ। यहां अनाज कमी होने के
•बावजूद सरकार यहां से अनाज बाहर भिजवा रही थी। अतः आन्दोलन में यह मांग की गई थी कि यहां से गेहू की बाहर निकासी बंद हो जनता ने इस आन्दोलन में खूब बढ़ चढ़ कर भाग लिया, बीकनेर बंद का आहवान किया गया ओर बीकानेर के बाजार 23 दिनों तक बंद रहे। धारा 144 लागू की गई जिसे आन्दोलनकारियों ने तोड़ा, आन्दोलन के दौरान 300 से ज्यादा लोगो को जेलों में बंद किया गया। शिव किसन आचार्य ‘कजलसा’ ने आमरण अनशन किया जो नौ दिनों तक चला। कई नेता बाहर से आये और जनता की जबरदस्त भागीदारी के सामने सरकार को झुकना पड़ा। फिर तो जैसे आन्दोलनों का सिलसिला ही चल पड़ा। जामसर जिप्सम के मजदूरों का आन्दोलन भी ऐतिहासिक हुआ मजदूरों के वेतन भत्ते व अन्य सुविधाओं की मांग को पहले नही माना गया, व्यास जी को आन्दोलन से हटने के लिये कई प्रलोभन दिये गये परन्तु मजदूरों के हिमायती श्री व्यास जी ने यह कहकर ठुकरा दिया कि जो देना मजदूरों को दो मै मजदूरों की पीठ में छुरा नहीं घोप सकता, आखिर कम्पनी को झुकना पड़ा आन्दोलन के चलते मजदूरों और उनके बीबी बच्चों को जेलों में बंद कर दिया गया, परन्तु मजदूरों के हौसले, आन्दोलन के प्रति प्रतिबधता को और जोश तथा व्यासजी के कुशल नेतृत्व की बदौलत आन्दोलन सफल हुआ और मजदूरों को वेतन भत्ते व अन्य सुविधाऐ देनी पड़ी। फिर तो जैसे आन्दोलनों का सैलाब सा आ गया, तांगेवाले, रेहड़ी वाले और गाड़े वालो, बिजली मजदूरों, रेलवे मजदूरों के आन्दोलन निरन्तर होते रहे जिसका नेतृत्व स्व. व्यास जी ने ही किया । तांगेवालों को लिये सरकार ने अलग से डिपो खोला, जिसमें परमिट से बजार से आधे दामों पर घोड़ों के लिये दाने चारे की व्यवस्था की गई ।
व्यास जी ने बीकानेर ही नहीं प्रदेश में जगह जगह आन्दोलन किये जिसमें चुरू, कोटा, अजमेर, फलौदी, जयपुर आदि कई जगहो पर जयपुर में भूख मोर्चा निकाला जो यादगार बन गया । व्यास जी को जनता का अपार स्नेह मिला। छोटे व्यापारी, दिहाड़ी मजदूर, सरकारी कर्मचारी आदि सभी वर्गों में व्यास जी की बड़ी साख थी। उस वक्त के साहित्य में भी व्यास जी के विचारों से ओत प्रोत रचनाये, रम्मतों में गीत आदि के माध्यम से हालातों का जिक्र स्पष्ट देखा जा सकता था व्यास जी के कई सहयोगी अपने जीवनपर्यन्त उनके साथ रहे इनमें से कुछ नाम उल्लेखनीय है – सुरेन्द्र शर्मा, शिवदयाल व्यास ‘बुई महाराज’, मोतीलाल रंगा, बुलाकी दास बोहरा, बुला महाराज व्यास, शिव किसन आचार्य ‘कजलसा’, रामचन्द्र स्वर्णकार, काशीराम स्वर्णकार, चांद हरिजन, राधेश्याम गौड, कल्याण सिंह, श्रीकिसन सुथार, लालचन्द सांड, सत्यनारयण पुरोहित,हनुमानदास आचार्य, नू पहलवान, मुनीम जी, सत्यनारायण हर्ष, पीरदान मोहता, नारायण दास रंगा, चांदा देवी पुरोहित, न जाने कितने लोग होगे जिन्होंने अपना सर्वस्व व्यास जी को समर्पित कर दिया था ।
व्यास जी 1957 से 1967 तक बीकानेर के विधायक रहे। राज्य विधान सभा में व्यास का कार्यकाल ऐतिहासिक रहा वे नेता विरोधी दल भी रहे । भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि मुद्दों पर वे लगातार चोट करते रहे । व्यास जी ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया को भ्रष्टाचार और राष्ट्रीय मामलों में गैर जिम्मेदारी के सम्बन्ध में कटघरे में खड़ा कर दिया। सादड़ी सोना काण्ड के मुद्दे पर उन्होनें सीधा मुख्यमंत्री को ही कटघरे में खड़ा कर दिया । 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान व्यास जी ने पश्चिमी सीमा का दौरा कर हमारी जमीन पर पाक के कब्जे की बात से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को अवगत कराया तो ताशकंद वार्ता के दौरान पाक ने शास्त्री के सामने रखे दस्तावेजो में दर्शाया इस विषय में सुखाड़िया ने शास्त्री जी को गुमराह किया देश को धोखा दिया और सदमा लगा और उन्हे मरना पड़ा, उन्होने कहा था कि हम एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेगे लेकिन जब वार्ता के दौरान जब उन्हें मालूम हुआ कि पश्चिमी सीमा के बड़े भू भाग पर पका का कब्जा है तो उन्हे समझोता करना पड़ा और इसी सदमें ने उनके प्राण ले लिये ।
व्यास जी के निरन्तर राज्य सरकार ओर मुख्य मंत्री पर हमलों की वजह से वो तिलमिला उठे और अंत में येन-केन-प्रकारेण व्यास जी को विधान सभा से बाहर रखने की ठान कर यहां से कांग्रेस से असना उम्मीद जिसे बनाया उन्होने 1967 के चुनावों में बीकानेर जैसलमेर वाद छोटी-बड़ी जात, पैसे देकर वोट खरीदना, बुर्कों में मर्दो द्वारा वोट डालना मतदान केन्द्रो पर धांधली करना, शराब पिला कर वोट लेना, झूठे ओर मन गढ़त आरोप लगाना जैसे हथकंडे अपना कर व्यास जी को हराने की व्यूह रचना रच कर उन्हे हराया ।
हार के बावजूद श्री व्यास जी ने संघर्ष करते रहे। दूध निकासी आन्दोलन में उन्हे उनका साथियों और परिवार सहित कईयों को जेल भिजवाया गया। अकाल से संबंधी काम दिलाने और राहत कार्यों को चालू करने की मांग करते हुए एक जूलुस के रूप में 9 अगस्त 1969 को व्यास मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने सर्किट हाऊस पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें जान से मारने की नियत से लाठियां बरसाई। जिससे उनके सिर पर गंभीर चोट आई, उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया, परन्तु हॉस्पिटल में दो घंटे न बिजली आई और न ही डॉक्टर उन्हे देखने पहुंचा। इलाज शुरू हुआ वे बच तो गये लेकिन इस गंभीर चोट के कारण वे फिर से उबर नहीं पायें उन पर हुए लाठी चार्ज का विधानसभा में जोरदार विरोध हुआ, भैरूसिंह शेखावत, महारावल लक्ष्मण सिंह, प्रो. केदार, चुन्नीलाल इंदोलिया, दौलत राम सहारण आदि सभी नेताओं ने अकारण लाठीचार्ज करने की घोर निंदा की और सूचना
विपक्ष सदन का बहिगर्मन कर सदन से बाहर आ गया।
दस वर्षो का विधायक रहने के बावजूद उनका अपना न कोई घर था ओर ना ही कोई बैंक बैलेस वे निरन्तर विभिन्न मौहल्लों में किराये के मकानों में रहते रहे। लाठी चार्ज के दौरान गंभीर चोट लगने और निरन्तर आन्दोलनों के चलते खाना-पीना अव्यस्थित होने से शरीर बहुत कमजोर हो चुका था ।
30 मई 1971 को स्थानीय पी. बी. एम. चिकित्सालय में इलाज के दौरान रात 11 बजे उन्होने अंतिम सांस ली। शहर में शोक की लहर दौड़ गई उनकी अर्थी के साथ हजारों लोग सम्मलित हुए, पूरा शहर का बाजार स्वतः बंद हो गया सभी की आंखों में आसू थे। दाह संस्कार के दौरान कांग्रेस नेत्री कान्ता खतूरिया बेहोश हो गई, जब तक सूरज चांद रहेगा मुरली तेरा नाम रहेगा के गगनभेदी नारों के साथ जनता ने अपने प्रिय नेता को विदाई दी। व्यास जी की चर्चा चलने पर लोग आज भी | कहते है कि ऐसा मृदुभाषी, कर्मठ मजदूरों और गरीबों का हितैषी ईमानदार देशभक्त और संघर्षशील नेता न हुआ है न होगा । ?
साभार – श्री नटवरलाल व्यास (उगाड़ा)