आपणी हथाई न्यूज, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में 2 मीट्रिक टन क्षमता की ”शहद एवं मधुमक्खी छत्ते से प्राप्त उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट” स्थापित की जाएगी। साथ ही शहद की गुणवत्ता जांचने के लिए ”मिनी शहद परीक्षण प्रयोगशाला” की भी स्थापना होगी। इसके अलावा ”मधुमक्खी पादप उद्यान” का विकास भी किया जाएगा।कुलपति डॉ अरुण कुमार ने बताया कि यह सब भारत सरकार के राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड द्वारा कृषि महाविद्यालय बीकानेर के कीट विज्ञान विभाग को राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन ( एनबीएचएम) के तहत 12 दिसंबर को स्वीकृत किए गए 83.75 लाख रुपए के प्रोजेक्ट के तहत होगा।
कुलपति डॉ अरुण कुमार ने बताया कि उत्तरी पश्चिमी राजस्थान में मधुमक्खी पालन को लेकर यह पहला प्रोजेक्ट स्वीकृत किया गया है। यह प्रोजेक्ट मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में किसानों और उद्यमियों के लिए नए अवसर प्रदान करेगा। साथ ही, शहद और मधुमक्खी उत्पादों की उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता में सुधार से यह क्षेत्र आत्मनिर्भर भारत अभियान में योगदान देगा।
कृषि महाविद्यालय बीकानेर के अधिष्ठाता डॉ पी.के.यादव ने बताया कि एसकेआरएयू कुलपति डॉ अरुण कुमार के विशेष प्रयासों के चलते कृषि विश्वविद्यालय को वर्ष 2011 के बाद लंबे अंतराल में भारत सरकार से इस वर्ष दो प्रोजेक्ट बांस उत्पादन और मधुमक्खी पालन स्वीकृत किए गए हैं। बांस उत्पादन को लेकर स्वीकृत प्रोजेक्ट के तहत राजस्थान के शुष्क इलाके में बांस की खेती की संभावनाओं पर कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। मधुमक्खी पालन के इस प्रोजेक्ट भी पर भी जल्द ही कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ एल.एल. देशवाल ने बताया कि इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना, उधमिता विकास करना और इससे संबंधित उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना है।इस परियोजना के तहत शहद एवं मधुमक्खी छत्ते से प्राप्त उत्पादों की प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना की जाएगी जिससे उसकी गुणवत्ता में सुधार होगा और बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। इसके साथ साथ मिनी-शहद परीक्षण प्रयोगशाला की भी स्थापना की जाएगी जिसका उद्देश्य शहद की गुणवत्ता जांचना और इसे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना है। इसके अतिरिक्त इस परियोजना के अंतर्गत मधुमक्खी पादप उद्यान का विकास भी किया जाएगा। जिसके अंतर्गत मधुमक्खियों के लिए अनुकूल पौधों की खेती और संरक्षण किया जाएगा, जिससे उनके प्राकृतिक आवास को बढ़ावा मिलेगा।