संभाग के सबसे बड़े अस्पताल पीबीएम अस्पताल अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा अव्यवस्थाओं और कुप्रबंधन के लिए सुर्खियों में बना रहता है। बीकानेर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल पीबीएम में आए दिन होने वाले रेजिडेंट और परिजनों के झगड़े, मरीजों के सामान चोरी होने, पीबीएम कार्मिकों की अकर्मण्यता,भ्रष्टाचार और आधारभूत सुविधाओं का अभाव जैसे अनेक ऐसे मुद्दे हैं जो पीबीएम की साख पर बट्टा लगा रहे हैं।
पीबीएम में आए दिन होते हैं डॉक्टर और परिजन के बीच झगड़े
पीबीएम अस्पताल में मरीज के परिजनों और रेजिडेंट तथा सीनियर डॉक्टर के बीच झगड़ों की खबरें आती रहती है। कई बार मरीज के परिजन उपचार में कोताही बरतने का आरोप डॉक्टर पर लगाते हैं तो कभी डॉक्टर द्वारा मरीज के साथ किए गए बुरे बर्ताव का आरोप लगाते हैं इन्हीं सब बातों को लेकर पीबीएम में अक्सर मरीज के परिजनों और डॉक्टर के बीच झगड़े होते रहते हैं। कई बार मामला इतना बढ़ जाता है कि डॉक्टर हड़ताल पर बैठ जाते हैं और मामला पुलिस तक पहुंच जाता है। पीबीएम अस्पताल में बार-बार होने वाली ऐसी घटनाओं से पीबीएम प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं।
मरीजों को होती है सीटी स्कैन एमआरआई और सोनोग्राफी करवाने में परेशानी
बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं का नारा देने वाली सरकार की पोल पीबीएम में उस वक्त खुल जाती है जब मरीज को सीटी स्कैन एमआरआई और सोनोग्राफी करवाने के लिए कर्मचारियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है। सोनोग्राफी करवाने के लिए पीबीएम में रात को 12 बजे लोग लाइन लगाकर सोते हैं तब जाकर उनका सुबह नंबर आ पाता है हालांकि बीते कुछ दिनों से इस व्यवस्था में सुधार हो रहा है लेकिन अब भी पीबीएम में सोनोग्राफी करवाना युद्ध लड़ने से कम नहीं है।
इसके अलावा एमआरआई और सीटी स्कैन करवाने के लिए भी मरीजों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पीबीएम में महाराजा सिटी स्कैन एवं एमआरआई सेंटर में सिटी स्कैन और एमआरआई होती है जहां पर संविदा पर आधारित कर्मचारी काम कर रहे हैं। इन कर्मचारियों का मरीजों के प्रति व्यवहार बेहद अशोभनीय होता है। महाराजा सिटी स्कैन एवं एमआरआई सेंटर में मरीजों के साथ पशुवत व्यवहार किया जाता है। सिटी स्कैन और एमआरआई करवाने के लिए मरीजों को पांच-पांच दिन का इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा मरीजों को रात के दो, तीन और 4 बजे का समय देकर अनावश्यक तरीके से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के अलावा संस्थान के मालिकों द्वारा भी मरीजों और उनके परिजनों को अनावश्यक रूप से परेशान किया जाता है। इस संबंध में कई बार मरीज और उनके परिजनों द्वारा अस्पताल अधीक्षक व जिला प्रशासन को लिखित में शिकायत दी गई है लेकिन इस संस्थान के विरुद्ध अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। पीबीएम में संचालित यह संस्थान ना केवल सरकार बल्कि स्थानीय प्रशासन के दावों की पोल खोलता है।
पीबीएम अस्पताल में लचर सुरक्षा व्यवस्था भी है एक बड़ा मुद्दा
पीबीएम अस्पताल में आए दिन होने वाली चोरियों की घटनाएं और असामाजिक तत्वों द्वारा पीबीएम में आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने की खबरें लगातार मीडिया में आती रहती है। कई बार चोरी करने वाले चोर कोई और नहीं बल्कि वहां काम करने वाले सुरक्षा गार्ड ही निकलते हैं। पीबीएम में मरीज और उनके परिजनों के सामान की चोरी होना आम घटना है। पीबीएम की सुरक्षा व्यवस्था एक निजी एजेंसी को दी गई है। निजी एजेंसी के अधीन चल रही पीबीएम की सुरक्षा व्यवस्था संदेह के घेरे में है। कुछ सुरक्षाकर्मियों का दावा है कि पीबीएम में उनसे तय समय से अधिक काम ठेकेदार द्वारा करवाया जाता है इसकी मुख्य वजह यह है कि पीबीएम में पर्याप्त सुरक्षाकर्मी नहीं है। ठेकेदार द्वारा सुरक्षाकर्मियों का भुगतान तो पूरा उठाया जाता है लेकिन जितनी संख्या में सुरक्षाकर्मी होने चाहिए इतनी संख्या में सुरक्षाकर्मी पीबीएम में नहीं है। आरोप है कि निजी एजेंसी द्वारा नियमों को ताक पर रखकर पीबीएम में काम कर रही है यही मुख्य वजह है कि पीबीएम की सुरक्षा व्यवस्था लचर है।
कर्मचारियों की अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार बिगड़ रहा पीबीएम की सेहत
पीबीएम में काम करने वाले कार्मिकों की कई बार पैसे मांगने की शिकायतें आती रहती है। अस्पताल में काम करने वाले कुछ कार्मिक बिना रिश्वत काम नहीं करते हैं। बीते माह पीबीएम में एक कर्मचारी द्वारा पर्ची बनाने के 10 रुपए मरीज से ले लिए थे जबकि सरकार द्वारा या व्यवस्था निशुल्क कर दी गई है बावजूद इसके कर्मचारी वहां पैसे वसूल कर रहा था ऐसे कई मामले हैं जब कार्मिक मरीज या उनके परिजनों से पैसे वसूल करते हैं। जनाना अस्पताल में मरीजों से पैसे वसूल करना एक दस्तूर सा माना जाता है। चाहे लड़का हो या लड़की वहां काम करने वाले कार्मिक मरीज और उनके परिजनों से पैसे वसूल करते हैं ऐसी खबरें कई बार आने के बावजूद आज तक पीबीएम प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर पाया है।
लपके,कमीशन खोरी और अतिक्रमण भी है एक बड़ी समस्या
पीबीएम अस्पताल में कमीशन खोरी का काम धड़ल्ले से चलता है। पीबीएम के बाहर बने निजी लैब संचालक अपने लव के पीबीएम में छोड़ रखे हैं जो मरीज और उनके परिजनों से बाहर से जांच करवाने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अलावा दवाइयों और अन्य सर्जिकल सामान के लिए भी लपके मरीज और उनके परिजनों को बाहर से खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं इस काम में पीबीएम के कर्मचारी भी शामिल रहते हैं। पीबीएम अस्पताल में काम करने वाले कार्मिक अपनी खुद की एंबुलेंस संचालित करते हैं और मरीज और उनके परिजनों को इसी एंबुलेंस से आने और जाने के लिए प्रेरित करते हैं इस संबंध में पूर्व में भी ऐसे कार्मिक के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है इसके बावजूद अब भी या खेल पीबीएम में धड़ल्ले से चल रहा है। पीबीएम का एक स्याह सच यह भी है कि यहां खून के दलाल भी घूमते हैं तो खून दिलवाने के नाम पर मरीजों और उनके परिजनों से पैसे ऐंठते हैं। इसके अलावा पीबीएम परिसर के भीतर रसूखदार लोगों द्वारा कई जगहों पर अतिक्रमण भी किया हुआ है।
संभागीय आयुक्त के सामने हैं चुनौती
संभागीय आयुक्त डॉ नीरज के पवन बीकानेर में सक्रियता से काम कर रहे हैं। संभागीय आयुक्त नीरज के पवन पीबीएम में भी व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए लगातार सक्रिय नजर आ रहे हैं लेकिन उनके सामने बड़ी चुनौती यह है कि पीबीएम में व्याप्त अव्यवस्थाओं में बाहरी लोगों से ज्यादा अंदर काम करने वाले कार्मिक ही शामिल है। हालांकि पहले भी पीबीएम में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सुधार के काफी प्रयास किए गए लेकिन स्थानीय और आंतरिक राजनीति के चलते प्रशासनिक अधिकारी व्यवस्थाएं सुधारने में असफल रहे हैं इन सब में सर्वाधिक चर्चित ऑपरेशन प्रिंस रहा है लेकिन आंतरिक और स्थानीय राजनीति के चलते ऑपरेशन प्रिंस भी विफल रहा। पिछले इतिहास को देखते हुए संभागीय आयुक्त नीरज के पवन के सामने यह बड़ी चुनौती है कि क्या वह पीबीएम में व्याप्त अव्यवस्थाओं को सुधार पाएंगे या फिर दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों की तरह वह भी विफल होंगे।
कुल मिलाकर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल पीबीएम जो संभाग सहित पूरे देश से आने वाले मरीजों को स्वस्थ करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है फिलहाल वह स्वयं अस्वस्थ है अब देखना होगा कि पीबीएम कब तक स्वस्थ हो पाता है।